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You can get here some essays on Kabir Doha in Hindi language
कबीर के दोहे
संत कबीर ( सन 1398 - 1518 ई . )
सतगुरु की महिमा अनंत , अनंत किया उपगार ।
लोचन अनंत उघाड़िया , अनंत दिखावण हार ॥ १ ॥
जो तोको काँटा बुवै , ताहि बोय तू फूल ।
तोहि फूल को फूल हैं , वाको हैं तिरसूल । । २ । ।
ऐसी बानी बोलिए , मन का आपा खोय ।
औरन को सीतल करै , आपहु सीतल होय ॥ ३ ॥
पाहन पूजे हरि मिलैं , तो मैं पूजूं पहार ।
ताते यह चाकी भली , पीस खाय संसार । । ४ । ।
जहाँ दया तहँ धर्म है , जहाँ लोभ तहँ पाप ।
जहाँ क्रोध तहँ काल है , जहाँ छिमा तहँ आप । । ५ । ।
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