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एक समय था जब पशु - पक्षियों और कीट - पतंगों तक को जीव परिवार का अंग माना जाता था । उनके साथ सहृदयतापूर्वक व्यवहार करने पर जोर दिया जाता था । पर आज की दुनिया में मनुष्य दूसरों के लिए मनुष्य न रहकर मानो गाजर - मूली मात्र रह गया है । इसे काटने में , कष्ट पहुँचाने में जरा भी हिचक नहीं होती , बल्कि अपने अहं और पौरुष की छाप छोड़ने में गर्व का अनुभव होता है । संसार भर में हिंसा की आग तेजी से भड़क रही है । व्यक्तिगत लड़ाई - झगड़े आज कहा - सुनी के स्थान पर किसी की जान लेने में शांत होने लगे हैं । छुटपुट कारणों से उत्पन्न मनमुटाव भी हिंसा का रूप धारण कर लेते हैं । उनकी चपेट में कई बार प्रतिद्वंदियों के निरीह बच्चे भी आ जाते हैं । आज हिंसक अपराध जिस तेजी से बढ़ रहे हैं , उतनी प्रगति और किसी क्षेत्र में नहीं हो रही है । यह आवेशग्रस्तता सचमुच चिंता का विषय है । इसके कारण समाज में सद्भावना और सुस्थिरता की जड़े हिल जाएँगी । लिखिए ।
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